बेशक समाज तरक्की कर रहा है, लोगों की सोच में भी बदलाव होने लगा है, बेटियां अब शिक्षित होने लगी है लेकिन आज भी एक बहुत बड़ा वर्ग आपको ऐसा जरुर मिल जाएगा जो की महिला के अधिकारों (Rights of Woman) को हमेशा से नकारता आया है…
हैल्लो लेडिज का आज का हमारा आर्टिकल एक बहुत ही जरुरी मुद्दे पर है जिसका विषय है नारी अधिकार (Rights of Woman)।
बेशक समाज तरक्की कर रहा है, लोगों की सोच में भी बदलाव होने लगा है, बेटियां अब शिक्षित होने लगी है लेकिन आज भी एक बहतु बड़ा वर्ग आपको ऐसा जरुर मिल जाएगा जो की महिला के अधिकारों को हमेशा से नकारता आया है। महिलाओं को शिक्षण तो मिलने लगा है लेकिन कोई उन्हें यह नहीं बताता है की उन्हें संविधान के द्वारा महिला होने के कुछ विशेष हक़ दिए गए है जिनका इस्तेमाल वह जरुरत पड़ने पर कर सकती है।
कई ऐसी जगह है जहाँ उनके साथ भेदभाव होता है। कई केस आज भी महिला उत्पीडन के सुनाई देते है। हमारे समाज के कई घरो में आज भी महिलाओं को शारीरिक और मानसिक कष्ट दिया जाता है और कई महिलाओं के जीवन का ये रोज का ही किस्सा हो चूका है पर फिर भी वे चुप रहती है, सहती है और इन चीजों को अनदेखा करती है। सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें जानकारी का अभाव है तो आइये जानते है की हर क्षेत्र में एक महिलाओं के क्या क़ानूनी अधिकार सुनिश्चित किये गए है जिसका पता भारत की हर महिला को होना ही चाहिए –
Rights of Woman –
घरेलु हिंसा से बचाव का अधिकार (right to protection from domestic violence) –
महिलाओं पर हिंसा के कई केस सुनने को आते है परन्तु अपने शादी को बचाने के कारण वह इस हिंसा के खिलाफ आवाज ही नहीं उठाती है। अपने पति के द्वारा हो रहे अत्याचार से सुरक्षा के लिए महिला इस अधिकार के लिए मांग कर सकती है और न सिर्फ पति बल्कि यदि महिला अविवाहित है और उसके साथ उनके ही घर के लोग किसी तरह की घरेलु हिंसा करते है तो वह इस कानून का उपयोग कर सकती हैय़
घरेलु हिंसा के केस में महिला सीधे न्यायालय में याचिका दायर कर सकती है, इसके लिए उसे किसी तरह के वकील की आवश्यकता नही होगी वह चाहे तो अपना पक्ष खुद भी रख सकती है।
भारतीय दंड संहिता 498 के अनुसार किसी महिला को दहेज़ के लिए परेशान करने और उसके साथ हिंसा करना अपराध है। पहले इसके लिए सजा कुछ समय के लिए होती थी परन्तु अब इसे बढाकर आजीवन कर दिया गया है।
गर्भपात का अधिकार (right to abortion)
भारतीय संविधान के अनुसार महिला का गर्भपात करवाना कानूनन जुर्म है परन्तु यदि किसी महिला को उसके गर्भ की वजह से स्वास्थ्य सम्बंधित खतरा या उसके जान जाने की सम्भावना हो तो हमारा कानून महिला को हक़ देता है की ऐसी स्तिथि में किया गया गर्भपात वैध माना जाएगा। इसके अलावा भी महिला की गर्भपात उसकी मंजूरी के बगैर नहीं करवा सकता यदि कोई ऐसा करता है तो महिला उस पर केस दर्ज कर सकती है।
वित्तीय अधिकार (women financial rights) –
यह अधिकार उन्हें यह हक़ देता है की वे शादी के बाद भी अपनी जॉब को जारी रख सकती है व खुद का अकाउंट चालू रख सकती है। उसके स्त्रीधन पर उनका कण्ट्रोल होगा इसके साथ ही पति द्वारा किये गए इन्वेस्टमेंट की जानकारी पत्नी को भी हो इसका भी हक़ महिला को दिया गया है व इसके अलावा यदि किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध उसके पैसे, शेयर्स या स्त्रीधन का इस्तेमाल किया जाता है या कोई उसके बैंक अकाउंट से पैसे निकालता है तो वह उस पर इस कानून का उपयोग कर सकती है।
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तलाक का अधिकार (right to divorce)
- हिन्दू विवाह अधिनियम 1994 के अनुसार कुछ परिस्तिथियों में महिला अपने पति से तलाक लेने का हक़ रखती है जैसे पति द्वारा दूसरी शादी करने पर, पति के सात साल तक लापता होने पर, वैवाहिक जीवन से संतुष्ट न होने पर, पति द्वारा मानसिक और शारीरक कष्ट देने पर, पति के धर्म परिवर्तन करने पर,पति को गंभीर या लाइलाज रोग होने पर, पति द्वारा त्यागे जाने पर, अलग रहने हुए एक वर्ष से अधिक समय होने पर।
- तलाक के बाद महिला को अपने लिए गुजाराभत्ता, स्त्रीधन को पाने का अधिकार एक महिला को है। इसके साथ ही महिला को बच्चों की कस्टडी लेने का भी अधिकार हमारा कानून देता है परन्तु इसका फैसला अदालत द्वारा ही लिया जाता है। यदि पति बच्चों की कस्टडी पाने के लिए पत्नी से पहले भी शिकायत दर्ज करे, तब भी महिला को अपने बच्चे की कस्टडी पाने का पूरी तरह से हक़ है।
- तलाक लेने की स्तिथि में महिला हिन्दू विवाह अधिनियम के भाग 4 के अंतर्गत गुजाराभत्ते की मांग कर सकती है जिसे स्वीकार्य करना होगा। तलाक के निर्णय के बाद भाग 5 के अनुसार महिला द्वारा परमानेंट एलिमनी कानूनन तय है। इसके अतिरिक्त यदि पत्नी को मिलने वाली राशी उसके लिए काफ़ी नहीं है तो वह अधिक राशी के लिए पति को बाध्य कर सकती है।
विवाह का अधिकार (right to marriage)
यदि किसी लड़की के माता-पिता उसके नाबालिग होने पर उसका विवाह कर देते है तो भी लड़की को यह क़ानूनी अधिकार है की वह बालिग होने पर खुद के पसंद अनुसार दोबारा शादी कर सकती है व उसकी पहली शादी को अमान्य घोषित किया जाएगा।
भरण पोषण का अधिकार (right to maintenance)
एक महिला को अपने बच्चे से जो की उसका भरण-पोषण करने में सक्षम है परन्तु वह अपनी माँ की देखभाल व भरना पोषण की जिम्मेदारी नहीं लेता है तो इस मामले में भी कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर सेक्शन 125 के अनुसार कोर्ट उसके बेटे को माँ के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त पैसे देने का आदेश देता है।
अन्य अधिकार (Rights of Woman) –
महिलाओं को इन सभी मुख्य अधिकारों के अतिरिक्त भी कई अधिकार दिए गए है जैसे है लड़कियों को ग्रेजुएशन तक निशुल्क शिक्षा का अधिकार भी हमारा कानून प्रदान करता है। यदि कोई महिला HIV ग्रस्त है तो उसे अधिकार है की वह अपने पति से देखभाल की मांग करे व यदि कोई महिला अकेली रहती है तो उसे पूरा हक़ है की वह अपने खुद के नाम पर राशन कार्ड बनवा सकती है।
आपने जाना –
Rights of Woman में आपने जाना महिलाओं को संविधान द्वारा क्या मुख्य क़ानूनी हक़ या अधिकार दिए गए है जिनका इस्तेमाल वह जरुरत पड़ने पर कर सकती है। उम्मीद करते है आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा होगा तो प्लीज् इसे अपनी महिला मित्रों के साथ शेयर जरुर करे और उन्हें भी अपने क़ानूनी अधिकार के प्रति जागरूक करे। इस आर्टिकल में हमने महिलाओं को दिए जाने वाले मुख्य अधिकारों में से 6 अधिकारों को जाना इसके आगे के अधिकारों को हम आगे के आर्टिकल में जानेंगे।